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चाणक्य-नीति ( दोहे )




चाणक्य-नीति के दोहे

दूर रहे, पर हिय बसे,वही रहे अति पास।
रहे पास,उर में नहीं,उसका दूर निवास।।

किससे, कितना,कब करें,बात,प्रेम औ' क्रोध?
जो जाने पंडित वही,ज्ञानी वही सुबोध।।

कोयल तो है बोलती,मधु स्वर जब आभास।
मधुर वचन ही बोलिए, कटुक वचन उपहास।।

दया-भाव जिसके हृदय,सब प्राणी के साथ।
ज्ञान-मोक्ष-लेपन-जटा, भष्म न उसके माथ।।

जो भी अक्षर का हमें, मिलता गुरु से ज्ञान।
नहीं तुल्य ऋण-मुक्ति कुछ,जिसे करें हम दान।।


                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   ९९१९४४६३७२



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4 Comments

Rupesh Kumar

18-Feb-2024 06:43 PM

बहुत खूब

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Sushi saxena

14-Feb-2024 05:05 PM

Very nice

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Mohammed urooj khan

12-Feb-2024 02:12 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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